भारत में डायबिटीज (मधुमेह) एक आम बीमारी का रूप धारण कर चुकी है। डायबिटीज मुख्य रूप से एक जीवन शैली की स्थिति है जो भारत में सभी आयु समूहों में खतरनाक रूप से बढ़ी है और युवा आबादी में भी अब इसका प्रसार तेजी से हो रहा है।

भारत में डायबिटीज और इसकी जटिलताओं का प्रबंधन कई समस्याओं के कारण एक बड़ी चुनौती है, जिसमें डायबिटीज और आबादी के बीच जागरूकता और स्वास्थ्य देखभाल कर्मियों की कमी, निगरानी उपकरण और यहां तक कि दूरदराज के क्षेत्रों में दवाओं की कमी भी है। 

ग्रामीण और शहरी दोनों जगहों पर जागरूकता की कमी के कारण डायबिटीज का स्तर काफी बढ़ रहा है।

भारत में सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों के बावजूद अधिकांश स्वास्थ्य केंद्रों में डायबिटीज के चिकित्सकों के पद खाली हैं, वहीं प्रयोगशाला में सुविधाएं नहीं हैं। डायबिटीज के इलाज के लिए आवश्यक दवाएं बहुत महंगी हैं। यही नहीं शुरू में लोग डायबिटीज को सीरीयस नहीं लेते हैं और जब यह बीमारी बढ़ जाती है तो चिकित्सकों के पास पहुंचते हैं। दूरदराज के क्षेत्रों में तो डायबिटीज मरीज को सही इलाज ही नहीं मिल पाता है।

अभी यह अलार्मिंग समय है पर अगर यहां पर इसे काबू नहीं पाया गया तो आने वाले वर्षों में हम दुनिया में डायबिटीज के मरीजों के साथ पहले स्थान पर होंगे।

डायबिटीज इतनी तेजी से फैल रहा है कि भारत में वर्ष 2025 तक डायबिटीज रोगियों की तादाद 6.99 करोड़ तक पहुंच सकती है।

एक दशक पहले भारत में डायबिटीज होने की औसत उम्र चालीस साल की थी, जो अब घटकर 25 से 30 साल हो चुकी है। 15 साल के बाद ही बड़ी संख्या में लोगों को डायबिटीज का रोग होने लगा है। कम उम्र में इस बीमारी के होने का सीधा मतलब है कि चालीस की उम्र आतेआते ही बीमारी के दुष्परिणामों को झेलना पड़ता है। मोटे व्यक्तियों में डायबिटीज होने का प्रतिशत अन्य लोगों की अपेक्षा अधिक होता है इसलिए उन्हें अपना वजन कम करने का प्रयास करना चाहिए।

अध्ययन बताते हैं कि भारत में डायबिटीज और इसकी सूक्ष्म और मैक्रोवास्कुलर जटिलताओं के कारण भारी बोझ की ओर इशारा करते हैं। यह मुख्य रूप से इसलिए है क्योंकि भारत में डायबिटीज नियंत्रण की स्थिति आदर्श से बहुत दूर है। आंकड़ों के आधार पर औसत ग्लाइकेटेड हीमोग्लोबिन का स्तर लगभग 9 प्रतिशत है जो अंतरराष्ट्रीय निकायों द्वारा सुझाए गए लक्ष्य से 2 प्रतिशत अधिक है। विशेष रूप से बुजुर्ग रोगी उच्च जोखिम में हैं। मधुमेह के बारे में जागरूकता बढ़ाने और रोगियों और चिकित्सकों के बीच इसके नियंत्रण के लिए एक संतुलित दृष्टिकोण भारत में समय की तत्काल आवश्यकता है। उच्च जोखिम समूहों में कड़ी निगरानी रखे जाने की आवश्यकता है।

डायबिटीज को ऐसे रोका जा सकता है

जीवनशैली में बदलाव

डायबिटीज के रोगी उच्च रक्तचाप एवं मोटापे से भी ग्रस्त देखे जाते हैं। डायबिटीज जीवनशैली का रोग है। इसे रोकने के लिए जीवनशैली में बदलाव लाना जरूरी होता है।

बच्चों में शुरू से ही खानेपीने की सही आदतें डालने से डायबिटीज रोग से बचा जा सकता है, चीनी, मिठाई तथा चाकलेट आदि देकर उन्हें ताजे फल, हरी सब्जियां एवं अंकुरित आहार खाने के लिए देना चाहिए।

आहार नियंत्रण जरूरी

डायबिटीज का पारिवारिक इतिहास रखने वाले व्यक्तियों को 35 वर्ष की आयु के बाद आहार नियंत्रण प्रारंभ कर देना चाहिए, क्योंकि आगे उन्हें डायबिटीज होने का खतरा बना रह सकता है। परिवार में डायबिटीज होने से व्यक्ति के डायबिटीज से ग्रस्त होने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। मातापिता के डायबिटीज होने पर बच्चों में रोग की आशंका 20 से 40 प्रतिशत तक हो सकती है।

बच्चों की आदतें बदलें

बच्चों में शुरू से ही व्यवस्थित दिनचर्या और योगाभ्यास की आदत डालनी चाहिए। बचपन से ही शारीरिक श्रम का महत्व समझ लेने से आगे उनका जीवन बेहतर होगा। मोटे लोगों में डायबिटीज होने का प्रतिशत अन्य लोगों की अपेक्षा अधिक होता है। इसलिए उन्हें अपना वजन कम करने का त्वरित एवं गंभीर प्रयास करना चाहिए।

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